जप,दान,व्रत , उपासना आदि के द्वारा ग्रहों की अंशाति ,अरिष्ट व समस्याओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है। अनुष्ठान परंपरा में जब और दान का विशेष महत्व है। ज्योतिष के अनुसार समस्याओं के समाधान हेतु ग्रहों के मंत्रों का जप एवं ग्रह से संबंधित दान समस्याओं के निदान में अहम भूमिका निभाते हैं। दु:स्थान स्थित ग्रहों की शांति के लिए जप,पूजन, ब्राह्मण भोजन दान आदि से करनी चाहिए। ग्रह जब शुभ होते हैं तो मनुष्य के जीवन में शुभ प्रभाव डालते हैं वह जब अशुभ होते हैं तो मनुष्य दुखी रहता है। ग्रहों की आराधना व्रत जब दान एवं रत्न धारण करके ग्रहों को प्रतिकूल किया जा सकता है।
सूर्य ग्रह
वैदिक मंत्र
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
सूर्य गांयत्री मंत्र
आदित्याय विद् महे प्रभाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात।
एकाक्षरी मंत्र
ॐ घृणि: सूर्याय नम:।
तांत्रिक मंत्र
‘ॐ हृां हृीं हृौं स: सूर्याय नम:।
बीज मंत्र
1. ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
जप संख्या- 7,000 (सात हजार)।
सूर्य का व्रत जप एवं दान
1 वर्ष व 30 रविवार अथवा 12 रविवार तक सूर्य देव का व्रत करना चाहिए लाल रंग के वस्त्र पहनने चाहिए। सूर्य देव के तांत्रिक मंत्र का जाप करना चाहिए। जाप 12 माला 5 माला अथवा तीन माला करना चाहिए। जप के बाद शुद्ध जल ,रक्त चंदन ,अक्षत, लाल पुष्प और दुर्वा से सूर्य देव को जल देना चाहिए।
भोजन में गेहूं की रोटी ,दलिया, दूध ,दही घी और चीनी खाएं। नमक नहीं खाना चाहिए। इस व्रत को करने से सूर्य का अशुभ फल समाप्त होते हैं। शुभ फलों की प्राप्ति होती है। तेज, शारीरिक रोग शांत हो जाते हैं ।वह निरोगी काया प्राप्त होती है।प्रशासनिक कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
दान वस्तुएं
माणिक, सुवर्ण, गेहूं,ताम्र, गुड़, केसर, मूंग ,लाल गाय, लाल वस्त्रों, लाल चंदन आदि का दान करना चाहिए।
पिता का सम्मान करें। सूर्य को आत्मा का कारक माना जाता है। सूर्य की स्थिति कुंडली में अच्छी होने पर व्यक्ति को प्रशासनिक सेवा में वह राजनीति में विशेष सफलता प्राप्त होती है।