मेष : मेष राशि के अंतर्गत जो नक्षत्र आते हैं, वे हैं अश्विनी (चार चरण), भरणी (चार चरण) एवं कृत्तिका (एक चरण) । आकाश मंडल में यह राशि ० अंश से 30 अंश तक है।यह राशि विषम, उग्र, दिवाबली, पूर्व दिशा की स्वामिनी, क्षत्रिय जाति, पृष्ठोदयी, चर, दृढ़, हस्व, पशु, शुष्क, चतुष्पद, अग्नि तत्व, लाल वर्णी, उष्ण, पित्त प्रधान, अति शब्दवाली राशि है। यह राशि काल पुरुष का मस्तक है। इस राशि का स्वामी मंगल है।जिन व्यक्तियों के प्रथम भाव में मेष राशि होती है, दूसरे शब्दों में जिन व्यक्तियों की लग्न मेष होती है, वे मंगल से प्रभावित होते हैं और उनके व्यक्तित्व को मोटे तौर पर इस तरह रेखांकित किया जा सकता है-ऐसे व्यक्ति प्रायः ताम्रवर्णी होते हैं। उनकी आँखें गोल, दृष्टि तीव्र एवं कुछ चंचल भी होती है। मुख आमतौर पर लंबा होता है। कद साधारण एवं केश कुछ काले, कुछ भूरे होते हैं। इनकी जांघे पुष्ट लेकिन घुटने कुछ कमजोर होते हैं। नसें उमरी हुई और शरीर पर घाव का चिह्न होता है।ऐसे व्यक्तियों का स्वभाव अभिमानी होता है। वे स्वतंत्र विचारों के, अपनी बात पर दृढ़ रहने वाले, आग्रही, हठी और स्पष्टवक्ता भी होते हैं। कभी-कभी वे आक्रामक भी हो जाते हैं। वे 'क्षणे रुष्टा, क्षणे तुष्टा' उक्ति को पूरी तरह चरितार्थ करते हैं। अर्थात् क्षण में रुष्ट हो जाते हैं और उनका क्रोध विस्फोटक होता है। वे अनायास क्रोधित होंगे पर अगले क्षण प्रसन्न भी हो जाएंगे। ये गंभीर प्रकृति के होते हैं और इनके मन को जानना बेहद कठिन होता है। ऐसे व्यक्ति अनुशासन-प्रिय होते हैं। स्वयं अनुशासन में रहते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी अनुशासन में रहें। व्यवस्था का सम्मान करें। साहित्य एवं कला के प्रति इनकी रुचि होती है और ज्ञान प्राप्त करने की लालसा भी।इनमें कुछ दोष भी हो सकते हैं। जैसे आवश्यकता पड़ने पर झूठ बोल देना, अपनी बात पर अड़े रहना, उसे मनवाने की पूरी कोशिश करना, इच्छानुसार कार्य न होने पर क्रोधित हो जाना या मुंह फुला लेना आदि। पर ये अच्छे मित्र सिद्ध होते हैं। ऐसे व्यक्ति घूमने-फिरने के शौकीन होते हैं। ये पैदल भी खूब चलते हैं। थकते नहीं। कभी-कभी तो अन्य प्रभावों के कारण निरंतर घूमना इनकी नियति बन जाती है।स्वर्गीय पं. गोपेश कुमार ओझा के अनुसार यदि यह लग्न 0' से 3.20' अंशों में उदित हो तो अच्छे फल मिलते हैं। लेकिन मंगल का भी शक्तिशाली होना आवश्यक है या तो यह स्वयं लग्न में रहे अथवा लग्न पर उसकी दृष्टि पड़े। ऐसे व्यक्ति अल्प संततिवाले होते हैं अर्थात् संतान अधिक नहीं होती।मेष लग्न के लिए मंगल तो शुभ फल देता ही है, सूर्य, चंद्र और गुरू भी शुभ फल देने वाले होते हैं। सूर्य पंचम भाव अर्थात् संतति भाव का स्वामी होता है। और चंद्रमा चतुर्थ भाव अर्थात् मातृभाव का। गुरू नवम स्थान अर्थात भाग्य स्थान का स्वामी बनता है। इनमें से चंद्रमा केंद्र में है और गुरू त्रिकोण में। मेष लग्न के लिए बुध को सर्वाधिक अशुभ माना जाता है। वह तृतीय भाव और षष्ठभाव का स्वामी बनता है। उसी तरह शनि दशम और आय भाव अर्थात् एकादश भाव का स्वामी बनता है। मेष लग्न के लिए शनि को भी अशुभ माना गया है क्योंकि मेष राशि के स्वामी मंगल से उसकी शत्रुता है। दरअसल मंगल अग्नि तत्व प्रधान उग्र प्रकृति का ग्रह है जबकि शनि एक ठंडा ग्रह है।