वृषभ राशि के अंतर्गत कृतिका के द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम और द्वितीय चरण आते हैं। वृषभ सम राशि है। सौम्य और रात्रिबली है। यह दक्षिण दिशा की स्वाभिमानी है। कांति रुक्ष और जाति वैश्य है। यह स्त्रीलिंगी, स्थिर, हस्व, शुष्क और पृष्ठोदयी राशि है। यह पृथ्वी तत्व राशि है। वृषभ राशि चतुष्पद, श्वेत, शीत ग्रीष्म युक्त, वायु प्रधान, अति शब्दवाली राशि मानी गयी है। यह काल पुरुष का मुख है। यह सम भूमि में निवास करती है।
जिन व्यक्तियों के प्रथम भाव में वृषभ राशि होती है, वे वृषभ लग्न वाले कहे जाते हैं। वृषभ राशि का स्वामी शुक्र है और वही उनकी लग्न का स्वामी भी होता है। ऐसे व्यक्ति हृष्ट-पुष्ट, बलिष्ठ, तेजस्वी व्यक्तित्व वाले होते हैं। उनके नेत्र मोहक, ओंठ किंचित मोटे तथा कान एवं गर्दन कुछ लंबी होती है। वे गेहुएं वर्ण के होते हैं। दांत पंक्तिवृद्ध सुव्यवस्थित होते हैं। उनकी पाचन शक्ति अच्छी होती है।
ऐसे व्यक्ति दृढ़ निश्चयी, गंभीर, मितभाषी, और अनुसंधान-प्रिय होते हैं। वे सदैव कुछ नया खोजना चाहते हैं। वे कठिन परिश्रमी और सोचे गये कार्य को पूरा करने के लिए हर प्रयत्न करने को तत्पर रहते हैं। उनमें बलिदान की भावना होती है। वे संवदेनशील होते हैं तथा स्वयं के किसी अनुचित कार्य पर पश्चाताप का अनुभव करते हैं। शुक्र से प्रभावित होने के कारण ये सौंदर्य-प्रेमी, स्त्रियों के प्रति सहज आकर्षित हो जाने वाले तथा साहित्य-संगीत, ललित कलाओं में रूचि रखने वाले होते हैं। इन्हें सुंदर, नये-नये वस्त्र पहनने का भी शौक होता है।
वृषभ लग्न वाले व्यक्ति यद्यपि संबंधियों से विशेष सुख नहीं पाते तथापि इनके मित्र अच्छे और पक्के होते हैं। पुत्रों की अपेक्षा अधिक कन्याओं के पिता बनते हैं। कृषिकार्य एवं पशु-पालन में इनका भाग्य चमकता है। यदि शुक्र लग्न में है अथवा शुक्र की लग्न पर दृष्टि पड़ रही है एवं वृषभ लग्न 13.20 से 16.40 के मध्य हो तो अच्छे फल मिलते हैं।
वृषभ राशि के लिए शुक्र के अतिरिक्त बुध एवं शनि शुभ माने गये हैं। बुध द्वितीय भाव एवं पंचम भाव का स्वामी बनता है। पंचम भाव त्रिकोण भी है। अतः त्रिकोण का स्वामी होने के कारण बुध शुभ फलदायक माना गया है। यों भी वह वृषभ लग्न के स्वामी शुक्र का मित्र माना गया है।
शनि भी नवम (त्रिकोण) एवं दशम भाव का स्वामी बनता है। यह भी शुक्र का मित्र है। कुछ आचार्य शनि को वृषभ लग्न के लिए योग कारक मानते हैं। वृषभ लग्न के लिए चंद्रमा, गुरू एवं मंगल अशुभ माने गये हैं। चंद्रमा तृतीय भाव का स्वामी बनता है। यह शुक्र का शत्रु भी है। इसलिए शुभफल नहीं देता। गुरू अष्टम भाव का स्वामी बनता है, साथ ही आय भाव का भी । अतः अष्टम भाव का स्वामी होने के कारण यह अशुभ हो जाता है। गुरू लाभ भाव का भी स्वामी है। यदि वह शुभ ग्रहों के साथ होगा तो ही शुभ फल प्रदान करेगा।